How to Find Liquidity in Stocks?

How to Find Liquidity in Stocks?

How to Find Liquidity in Stocks? : किसी स्टॉक की लिक्विडिटी का पता करने के लिए कोई standard definition या फिर कोई Official measurement नहीं है जिससे कि हम सिर्फ देखकर बोल दें कि इस स्टॉक की लिक्विडिटी ज्यादा है और इसकी कम है।

हम ऐसा नहीं कह सकते कि स्टॉक की वॉल्यूम एक निश्चित Volume होनी चाहिए तभी वह स्टॉक लिक्विड होगा या इलिक्विड। 

स्टॉक की लिक्विडिटी काफी चीजों पर निर्भर करती है जैसे: Market cap, Trading volume, price charts, spreads आदि जिनको देखकर आप पता कर सकते हैं कि कोई स्टॉक लिक्विड है या इलिक्विड।

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कोई स्टॉक लिक्विड है या नहीं कैसे पता करें?

स्टॉक लिक्विड है या नहीं, यह एक रिलेटिव टर्म है। हो सकता है कि कोई स्टॉक आपके लिए लिक्विड हो लेकिन वही स्टॉक किसी और के लिए illiquid हो। तो इसका पता आप दोनों की quantity को देखकर पता लगा सकते हैं कि कौन सा स्टॉक किसके लिए लिक्विड है और किसके लिए इलिक्विड।

नियमआप पूरे दिन में जितनी quantity खरीद रहे हैं अगर वह पूरे दिन भर के या फिर average 10 दिनों के Total trading volume के 1% से कम है तो आपको लिक्विडिटी को ध्यान में रखने की इतनी ज्यादा जरूरत नहीं है।

Example:

मान लीजिए अगर आप आज किसी कंपनी के 100 स्टॉक्स खरीद रहे हैं और daily उसके 2000 स्टॉक्स ट्रेड होते हैं तो वह स्टॉक आपके लिए illiquid stock होगा। क्योंकि आप 2000 stocks के 1% यानी 20 stocks से ज्यादा यानी 100 stocks खरीद रहे हैं इसीलिए वह आपके लिए ही इलिक्विड स्टॉक होगा।

लेकिन अगर पूरे दिन में उस स्टॉक के 50 हजार या उससे ज्यादा स्टॉक ट्रेड होते हैं तो वह आपके लिए लिक्विड स्टॉक होगा।

मतलब किसी stock के टोटल ट्रेडिंग वॉल्यूम के 1 प्रतिशत से कम स्टॉक खरीदने पर कोई चिंता की बात नहीं है।

  • आपको केवल यह देखना चाहिए कि आप कितना वॉल्यूम Trade कर रहे हैं और आपके buy या sell करने से उस stock के price में movement होगी या नहीं।

movement होगी या नहीं इसका पता लगाने के लिए आपको स्टॉक के प्राइस और ट्रेडिंग वॉल्यूम दोनों को देखना होगा।

Example:

  • MRF का दिन का average ट्रेडिंग वॉल्यूम लगभग 10000 के आसपास रहता है यानी कि लोग हर दिन MRF कम्पनी के 10 हज़ार stocks buy या sell करते हैं।
  • लेकिन अगर कोई 40 या 50 रुपये का stock है और उसकी ट्रेडिंग वॉल्यूम 10,000 है तो यह चिंता का विषय है तो ऐसे में आपको उस स्टॉक को नहीं खरीदना चाहिए।

दोस्तों यही 1% वाला नियम ज्यादातर लोग स्टॉक की लिक्विडिटी पता करने के लिए use करते हैं।

लिक्विड या इलिक्विड स्टॉक्स का पता लगाते समय आपको कुछ पॉइंट्स को ध्यान में रखना चाहिए जिसमें सबसे पहला point है कि शेयर का Free Float कितना है?

Free float का मतलब है कि कितने शेयर्स इस समय ट्रेडिंग के लिए उपलब्ध हैं।

Example:

मान लीजिये कोई stock है जिसका free float 1 करोड़ है यानी कि 1 करोड़ शेयर्स स्टॉक मार्केट में ट्रेडिंग करने के लिए उपलब्ध है। लेकिन उसका दिन का average trading volume सिर्फ 1 लाख है।

तो यहां पर आप कह सकते हैं कि ये स्टॉक illiquid है क्योंकि जितने शेयर्स ट्रेडिंग के लिए available हैं उसका एक बहुत छोटा हिस्सा दिन में ट्रेड होता है।

यह अच्छी बात भी हो सकती है और बुरी बात भी हो सकती है। इसके लिए आपको देखना होगा कि कौन सा stock है।

  • वास्तव में Nifty 100 के अंदर भी आप कुछ ऐसे स्टॉक्स पाएंगे जिनकी फ्री फ्लोट तो काफी ज्यादा High है जबकि दिन का ट्रेडिंग वॉल्यूम काफी कम रहती है।

तो क्या Nifty100 के stocks भी इलिक्विड स्टॉक्स कहलायेंगे तो ऐसा कुछ जरूरी नहीं है इसके पीछे काफी कारण हो सकते हैं जैसे कि;

  • जो निवेशक हैं वह लंबी अवधि के लिए निवेशक हैं वह स्टॉक्स को इसलिए बेचना नहीं चाहते होंगे क्योंकि उन्हें लगता है कि आने वाले समय में स्टॉक का प्राइस बढ़ सकता है।
  • और यहां पर डिमांड और सप्लाई का नियम भी लागू होता है मतलब अगर खरीदने वाले ज्यादा हैं तो उस स्टॉक का प्राइस बढ़ जाएगा।
  • तो यहाँ पर आपको Nifty50 या Nifty100 के अंदर ऐसे काफी स्टॉक्स मिलेंगे जिनका Free float तो काफी High है लेकिन trading volume बहुत कम है।
  • तो अगर किसी स्टॉक की वॉल्यूम कम है लेकिन उसकी डिमांड ज्यादा है तो उसका प्राइस ऊपर जाएगा।

इसीलिए मैंने शुरुआत में बोला था कि अगर स्टॉक के लिक्विडिटी कम है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह खराब stock है कई बार यह अच्छा संकेत भी हो सकता है।

जैसे कि कोई अगर बहुत अच्छा स्टॉक है जिसमें बहुत सारे लोगों ने निवेश किया हुआ है लेकिन अब वह उस स्टॉक को बेचना नहीं चाहते तो उसका trading volume कम होगा, लिक्विडिटी कम होगी।

लेकिन अगर वहां पर buyers का इंटरेस्ट है तो आप देखेंगे कि वह काफी तेजी से ऊपर जाएगा।

दूसरा point है: आपको यह जानने की जरूरत है कि किसी particular स्टॉक को कितने लोग Trade कर रहे हैं यानी कि कितने लोग उसे खरीद या बेच रहे हैं। ये आपको पता होना चाहिए।

लेकिन अब सवाल आता है कि आप Number of Trades कैसे पता करेंगे?

इसके लिए आपको NSE की वेबसाइट पर जाकर उस स्टॉक की भाव कॉपी को डाउनलोड करना होगा जिसमें आपको Number of Trades देखने को मिल जाएंगे।

अगर लिक्विडिटी की बात करें तो Number of Trades भी लिक्विडिटी का ही हिस्सा है।

इसे पता करना इसलिए जरूरी होता है क्योंकि हो सकता है कि किसी पर्टिकुलर स्टॉक के अंदर केवल कुछ लोग मिलकर उसके प्राइस को ऊपर ले जा रहे हों।

जैसे; एक बार न्यूज़ में आया था कि केवल कुछ 15 से 20 लोग आपस में मिलकर ‘वकरंगी सॉफ्टवेयर‘ नाम का एक स्टॉक था जिसके प्राइस को लगातार ऊपर ले जा रहे थे जैसा कि आप नीचे स्क्रीनशॉट में देख सकते हैं।

यानी कि कुछ लोग उसे आपस में ही मिलकर काफी बड़ी मात्रा में इसके स्टॉक को buy और sell कर रहे थे जिससे कि उसकी value और volume अचानक से बहुत ज्यादा दिखने लगे और रिटेल इन्वेस्टर्स का ध्यान उसकी तरफ जाने लग गया और लोग उसे खरीदने लग गए।

लेकिन थोड़े ही समय में जब बहुत सारे लोगों ने उसे खरीद लिया तो उस स्टॉक का प्राइस अचानक बहुत नीचे चला गया क्योंकि उन 15 से 20 लोगों ने अपने सारे खरीदे हुए शेयर्स बेच दिए, जिससे बहुत सारे लोगों को काफी नुकसान हुआ।

तो ऐसे स्टॉक्स में निवेश करने से पहले अच्छी तरह से कंपनी के बारे में पता कर ले नहीं तो आप बहुत बड़े trap में फस सकते हैं और अपना काफी पैसा गंवा सकते हैं।

इसलिए आपको किसी भी स्टॉक में निवेश करने से पहले यह देखना चाहिए कि उस पर्टिकुलर स्टॉक में कितने लोग, कितने buyers या कितने ट्रेडर्स interested हैं।

क्योंकि अगर volume और value दोनों High हैं लेकिन “Number of unique trades” काफी कम है तो इसका मतलब है कि कुछ बड़े प्लेयर्स मिलकर उस स्टॉक को काफी बड़ी मात्रा में ट्रेड कर रहे हैं।

इसलिए अगर आपको ऐसा कुछ लगे तो ऐसे स्टॉक में कभी भी निवेश नहीं करना चाहिए।

Methods to identify liquid stocks

  1. स्टॉक की market capitalization को देखकर

1. स्टॉक की market capitalization को देखकर

तो सबसे पहला तरीका है स्टॉक लिक्विडिटी पता करने का: स्टॉक की market capitalization को देखकर।

market capitalization यानी कि कंपनी की Total Market Value ये आपको बताती है कि कंपनी कितनी बड़ी है।

For Example: Indusland Bank जोकि एक छोटा सा बैंक है उसकी मार्केट कैप (90000 करोड) Reliance Industries की मार्केट कैप (8 लाख करोड़) की तुलना में बहुत कम है।

इसका मतलब: जितनी बडी कंपनी की मार्केट कैप होगी, उसके स्टॉक की लिक्विडिटी उतनी ही ज्यादा होगी।
यानी कि High मार्केट कैप = High लिक्विडिटी।

तो Large Cap Stocks में सबसे ज्यादा लिक्विडिटी होती है जैसे: Reliance, TCS, ICICI Bank, HDFC Bank, Maruti Suzuki, Hindustan Unilever जैसी कंपनियों में आपको सबसे ज्यादा लिक्विडिटी मिलेगी. यानी कि इनके शेयर्स को खरीदने और बेचने में आपको कोई दिक्कत नहीं होगी.

अब अगर Mid cap stocks की बात करें तो इनकी लिक्विडिटी Large cap stocks की तुलना में कम होती है। लेकिन इनमें भी एक रेंज होती है जैसे; कई Mid cap stocks हैं जिनमें लिक्विडिटी काफी अच्छी होती है पर कुछ Mid cap stocks ऐसे भी होते हैं जिनमें लिक्विडिटी बहुत कम होती है।

Example:

  • कुछ Midcap stocks जिनमें लिक्विडिटी काफी अच्छी है वो हैं: Mindtree, अपोलो हॉस्पिटल, इंडियन बैंक etc.

अब अगर Small cap stocks की बात करें तो इनकी लिक्विडिटी सबसे कम होती है जैसे; साउथ इंडियन बैंक जागरण प्रकाशन, चेन्नई पैट्रोलियम (CPCL) आदि।

लेकिन इन Small cap stocks में भी स्टॉक्स की एक sub-category होती है जिन्हें “Micro cap stocks” कहा जाता है।

इनकी लिक्विडिटी सबसे खराब होती है और इसीलिए ज्यादातर लोग इनमें फंसते हैं क्योंकि जब मार्केट ऊपर जा रहा होता है तो ये micro cap stocks काफी तेजी से भागते हैं और इन्वेस्टर्स भी मल्टीबैगर के चक्कर में इनमें काफी पैसा लगाते हैं और कई लोग इनमें पैसा बना भी लेते हैं।

लेकिन जब मार्केट नीचे गिरने लगता है तो इन स्टॉक्स में Buyers नहीं मिलते हैं यानी कि लिक्विडिटी बहुत कम हो जाती है इसी वजह से ये स्टॉक काफी तेजी से गिरते भी हैं।

Example:

  • 2017 में micro cap stocks काफी तेजी से ऊपर की ओर भागे थे लेकिन जब 2018 का करेक्शन आया तो ये stock 50%, 60% और कई बार 90% भी ऊपर से नीचे गिरे और ये सब केवल इसीलिए हुआ क्योंकि इन स्टॉक्स में buyers मिलते ही नहीं है।
  • इनकी तुलना में अगर आप Large cap stocks को देखें तो उनमें correction 20% से 30% का आया।

इसलिए आपको माइक्रो कैप स्टॉक्स से थोड़ा दूर रहना चाहिए। और अगर इनमें इन्वेस्ट करना भी चाहते है तो Mutual Fund के माध्यम से इन्वेस्ट करें क्योंकि वह थोड़ा इससे safe है।

2. Stocks की Spreads को चेक करके

Spreads का मतलब होता है Bid ओर Ask में Difference. यानी कि Buyers कितने प्राइस पर खरीदने को तैयार है और Seller कितने प्राइस पर बेचने को तैयार है तो इन दोनों का जो difference है उसे ही ‘Spreads‘ कहते हैं।

  • Higher Liquidity Stocks में Spreads काफी कम होते हैं और Lower Liquidity Stocks में Spreads काफी wider होते हैं।

जैसे कि आप नीचे दिए गए स्क्रीनशॉट में देख सकते हैं कि Higher Liquidity Stocks का spread कम है और Lower Liquidity Stocks का spread ज्यादा है।

👉 ये spread आप किसी भी ब्रोकर प्लेटफार्म जैसे- Zerodha, Angel Broking, Sherekhan आदि ब्रोकर्स के द्वारा चेक कर सकते हैं।

 

जैसा कि आप अपनी स्क्रीन पर ब्रोकर के प्लेटफार्म पर देख सकते हैं कि किसी भी स्टॉक में जब ट्रेडिंग हो रही होती है तो आपको 5 Bid quantity दिख रही होती है और 5 Ask quantity दिख रही होती है।

  • जिन स्टॉक्स का प्राइस काफी ज्यादा होता है मतलब High Value Stocks जैसे: MRF तो इसमें हो सकता है कि Bid और ask का spread यानी अंतर बहुत बड़ा हो।
  • लेकिन अगर यही bid और ask का spread किसी छोटी value के स्टॉक्स का बहुत ज्यादा है जैसे; मान लीजिए कोई 200 रुपये का stock है और उसका bid और ask का spread 2 रुपये है तो यहां पर ये चिंता का विषय है।
  • But High value stocks में spread अगर 30-40 रुपये भी है तो फिर कोई दिक्कत नहीं है।

तो अगर आप बिड और आस्क का स्प्रेड देखते हैं तो आपको वहां पर स्टॉक्स की वैल्यू भी देखनी जरूरी है क्योंकि कई बार बहुत कम वैल्यू वाले स्टॉक्स का spread बहुत ज्यादा होता है जिनमें आपको बिल्कुल भी निवेश नहीं करना चाहिए।

एक बार मैंने एक 17 रुपये का stock देखा था जिसमें spread 4 रुपये था तो ऐसे स्टॉक में आपको कभी भी निवेश नहीं करना चाहिए।

इसीलिए आपको हमेशा उन्हीं स्टॉक्स में निवेश करना चाहिए जिसमें स्टॉक के प्राइस के अनुसार उसका bid और ask का spread बहुत कम हो।

3. स्टॉक्स के Intraday Charts को देखकर।

Higher Liquidity Stocks के चार्ट्स पर प्राइस पानी की तरह बहता है मतलब आगे बढ़ता है यानी कि आपको बीच में कोई breaks नहीं मिलेंगे जैसा कि आप infosys कम्पनी के इस चार्ट में देख सकते हैं।

अब इस chart को compare कीजिये नीचे दिए गए इस small cap कंपनी के चार्ट से, जिसको देखने पर ऐसा लगता है जैसे किसी ने कागज पर छोटी-छोटी लकड़ियां खड़ी कर दी हों।

और ऐसा इसीलिए है क्योंकि buyers ही इनमें इतने कम होते हैं कि ऐसे स्टॉक्स में prices flow होने के बजाय लड़खड़ाते हुए चलते हैं।

4. आप किस istrument को ट्रेड कर रहे हैं

जैसा कि आप जानते हैं equity या cash segment में सबसे ज्यादा लिक्विडिटी होती है। उसके बाद Futures में उससे कम लिक्विडिटी होती है और फिर Options में सबसे कम लिक्विडिटी होती है।

अब Futures और Options में भी काफी variations होते हैं। जैसे; अगर आप Nifty, BankNifty, TCS या Reliance जैसी कंपनीस के Futures को देखें तो आपको इनमे काफी लिक्विडिटी मिलेगी।

लेकिन इनके अलावा काफी ऐसे स्टॉक्स भी हैं जिनमें आपको फ्यूचर्स और ऑप्शंस में काफी कम लिक्विडिटी मिलेगी।

तो मेरी सलाह आपको यही रहेगी कि ट्रेडिंग करने से पहले स्टॉक की लिक्विडिटी जरूर पता कर लें।

Written by

Nandeshwar Katenga

Nandesh Katenga is a versatile individual with a passion for the digital realm. With a background in computer programming and a strong interest in sales, marketing, website development, personal finance, and blogging, Nandesh offers insights and expertise. Expertise: 1. **Computer Programming:** Nandesh excels in problem-solving through coding, from crafting innovative software solutions to dissecting complex algorithms. 2. **Sales and Marketing:** Nandesh masters the art of selling and the science of marketing, helping boost product visibility and devising sales strategies. 3. **Website Development:** Nandesh's specialty is creating seamless digital experiences that not only look great but function flawlessly. 4. **Personal Finance:** Your financial well-being is Nandesh's focus, and they provide tips and tricks for smart money management, wise investments, and securing your financial future. 5. **Blogging:** Nandesh uses writing as a creative outlet to share knowledge and insights, keeping you updated on technology, business, and personal finance trends. Let's explore the digital world together. Feel free to reach out to Nandesh for questions or collaborations. Your success is their priority in this ever-evolving digital landscape.

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